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COMBING PROCESS ( A SPINNING PROCESS)
कॉम्बिंग प्रक्रिया (एक स्पिनिंग प्रक्रिया)
"कॉम्बिंग एक ऐसी प्रक्रिया है जो स्लाइवर से छोटे तंतुओं, अशुद्धियों, नेप्स , अपरिपक्व तंतुओं को बाहर निकाल देती है, तंतुओं को सीधा करती है और उन्हें स्लाइवर की लंबाई के समानांतर बनाती है।" यार्न निर्माण प्रक्रिया में कॉम्बिंग की प्रक्रिया का विशेष महत्व होता है। कॉम्बिंग की प्रक्रिया यार्न को अतिरिक्त गुणवत्ता लाभ प्रदान करती है। बहुत अधिक यार्न शक्ति, उच्च स्तर की समरूपता, कम हैरिनेस , कम नेप्स % और यार्न में अपरिपक्व फाइबर का सबसे कम प्रतिशत कॉम्बिंग प्रक्रिया के बाद होता है। सूत की उच्च गुणवत्ता प्राप्त करने के लिए कॉम्बिंग करना अनिवार्य होता है। कोम्ब्ड यार्न कार्डेड यार्न की तुलना में अधिक चमकदार दिखता है। कॉम्बिंग की प्रक्रिया यार्न की लागत को भी प्रभावित करती है। कॉम्बिंग की प्रक्रिया के बाद यार्न की निर्माण लागत लगभग 10-15% बढ़ जाती है। कॉम्बिंग की प्रक्रिया का उपयोग आमतौर पर केवल सूती धागे के निर्माण में किया जाता है। कोम्ब्ड यार्न का उपयोग सूटिंग, शर्टिंग, ट्राउजर, तौलिये आदि जैसे कपड़ों के निर्माण के लिए किया जाता है। चूंकि कॉम्बिंग की प्रक्रिया स्लाइवर से छोटे तंतुओं को समाप्त कर देती है जिससे कि कॉम्बिंग की प्रक्रिया के बाद बड़ी मात्रा में अपशिष्ट निकलता है। संसाधित होने वाली सामग्री के आधार पर फाइबर का लगभग 12 - 25% अपव्यय होता है। इस अपव्यय का उपयोग मोटे धागों की कताई में किया जाता है।
कॉम्बिंग प्रक्रिया के उद्देश्य:
कॉम्बिंग प्रक्रिया के मुख्य उद्देश्य नीचे दिए गए हैं:
कॉम्बिंग प्रक्रिया के प्राथमिक उद्देश्य:
• स्लाइवर में मौजूद छोटे रेशों को हटाना ।
• रेशों को सीधा करना ।
• रेशों को स्लाइवर की लंबाई के साथ अधिकतम समानांतर करना ।
• स्लाइवर की एकरूपता में सुधार करना ।
कॉम्बिंग प्रक्रिया के माध्यमिक उद्देश्य:
• रुई में मौजूद गंदगी और धूल को खत्म करना ।
• कपास की अधिकतम सफाई करना ।
• टूटे हुए बीज और नेप्स जैसी बाहरी अशुद्धियों से स्लाइवर को मुक्त करना ।
• स्लाइवर में मौजूद अपरिपक्व रेशों को हटाना ।
• सूत की दृश्य अपीयरेंस में सुधार करना ।
• सूत की तन्य शक्ति को अधिकतम बढ़ाना ।
• सूत की चमक और चिकनाई में सुधार करना ।
• सूत के स्पर्श और फील को बेहतर करना ।
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